Sundar Lal Sharma Poetry Chhattisgarhi
लेखक – पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. सुन्दरलाल शर्मा छत्तीसगढ़ी कविता के प्रथम रचनाकार पंडित सुंदरलाल शर्मा जी है |
जिन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है।
जिनका जन्म राजिम में सन् 1881 में हुआ था. जो स्वाधीनता संग्रामी थे, वे उच्च कोटी के कवि भी थे।
शर्माजी ठेठ छत्तीसगड़ी में काव्य सृजन की थी। पं. सुन्दरलाल शर्मा को महाकवि कहा जाता है।
किशोरावस्था से ही सुन्दरलाल शर्मा जी लिखा करते थे।
उन्हें छत्तीसगढ़ी और हिन्दी के अलावा संस्कृत, मराठी, बगंला, उड़िया एवं अंग्रेजी आती ती।
हिन्दी और छत्तीसगड़ी में पं. सुन्दरलाल शर्मा ने 21 ग्रन्थों की रचना की।
उनकी लिखी “छत्तीसगड़ी दानलीला” आज क्लासिक के रुप में स्वीकृत है।
श्याम से मिलने के लिए गोपियाँ किस तरह व्याकुल हैं,
वह निम्नलिखित पंक्तियों से स्पष्ट होता है.
Janen Chelik Bhaeen Kanhai CG Poetry
जानेन चेलिक भइन कन्हाई
तेकरे ये चोचला ए दाई।
नंगरा नंगरा फिरत रिहिन हे।
आजेच चेलिक कहाँ भइन हे।
कोन गुरु मेर कान फुँकाइना
बड़े डपोर संख बन आईन
दाई ददा ला जे नई माने।
ते फेर दूसर ला का जानै।
Pandit Sundarlal Sharma Cg Kavita
छत्तीसगढ़ के मझोस एक राजिम सहर,
जहां जतरा महीना मांघ भरेथे।
जहां जतरा महीना मांघ भरेथे।
देस देस गांव गांव के जो रोजगारी भारी,
माल असबाब बेंचे खातिर उतरथें।।
राजा और जमींदार मंडल-किसान
धनवान जहां जुर कै जमात ले निकरथे।
सुन्दरलाल द्विजराज नाम हवै एक
भाई! सनौ तहां कविताई बैठिकर
– पं. सुन्दरलाल शर्मा
Ek Javani Uthati Sabek एक जवानी उठती सबेक
एक जवानी उठती सबेक
पन्दा सोला बीस को
का आंजे अलंगा डारे।
मूड़ कोराये पाटी पारे।।
पांव रचाये बीरा खाये।
तरुवा में टिकली चटकाये।
बड़का टेड़गा खोपा पारे।
गोंदा खोंचे गजरा डारे।।
नगदा लाली मांग लगाये।
बेनी में फुंदरी लटकाये।।
टीका बेंदी अलखन बारे।
रेंगें छाती कुला निकारे।।
कोनो हैं, झाबा गंथवाये।
कोनो जुच्छा बिना कोराये।।
भुतही मन असन रेंगत जावै।
उड़ उड़ चुन्दी मुंह में आवै।।
पहिरे रंग रंग के गहना।
हलहा कोनों अंग रहे ना।।
कोनो गंहिया कोनो तोड़ी।।
कोनों ला घुंघरु बस भावै।।
छुमछुम छुमछुम बाजत जावै।
खुलके ककनी हाथ बिराजै।।
पहिरे बुहंटा अउ पछेला।
जेखर रहिस सीख है जेला।।
बिल्लोरी चूरी हरवाही।
स्तन पिंडरी अउ टिकलाही।।
कोनों छुच्छा लाख बंधाये।।
पिंडरा पटली ला झमकाये।।
पहिरे हे हरियर छुपाहीं।
कोनों छुटुवा कोनों पटाही।।
करघन कंवरपटा पहिरे रेंगत हाथी
जेमा ओरमत जात है, हीरा मोती
चांदी के सूता झमकाये
गोदना हांथ हांथ गोदवाये।।
दुलरी तिलरी कटवा मोहै
ओ कदमाही सुर्रा सोहे।।
पुतरी अऊर जुगजुगी माला।
रुपस मुंगिया पोत विशाला।।
हीरा लाल जड़ाये मुंदरी।
सब झन चक-चकर पहिरे अंगरी
पहिरे परछहा देवराही।
छिनी अंगुरिया अऊ अंगुराही।
खांटिल टिकली ढार बिराजै।
खिनवा लुरकी कानन राजै।।
तोखर खाल्हे झुमका झूलै।
देखत डउकन के दिल भूलै।।
नाकन में सुन्दर नाथ हालै।ं
नहिं कोऊ अ तोला के खालै।।
कोनों तिरिया पांव रचाये।
लाल महाडर कोनो देवाये।
चुटकी चुटका गोड़ सुहावै।
चुटचुट चुटचुट बाज जावै।।
कोनो अनवट बिछिया दानों।
दंग दंग ले लुच्छा है कोनों।।
रांड़ी समझें पांव निहारै।।
ऊपर एंह बांती मुंह मारै।।
दांतन पाती लाख लगाये।
कोनों मीसी ला झमकाये।।
एक एक के धरे हाथ हैं।
गिजगिज गिजगिज करत जाते हैं
– पं. सुन्दरलाल शर्मा
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