Koduram Dalit Ki Rachnaye CG Autohor Compositions
लेखक – कोदूराम दलित
ढोलक बजायैं, मस्त होके आल्हा गाय रोज,
इहां-उहां कतको गंवइया-सहरिया,
रुख तरी जायें, झुला झूलैं सुख पायं अड,
कजरी-मल्हार खुब सुनाय सुन्दरिया।।
नांगर चलायं खेत जा-जाके किसान-मन,
बोवयं धान-कोदो, गावैं करमा ददरिया।
कभू नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी झांकर मां,
कोन्हो ओढ़े बोरा, कोन्हों कमरा-खुमरिया।।
बाढिन गजब मांछी, बत्तर-कीरा “ओ” फांफा,
झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया।
पानी-मां मउज करें-मेचका, किंभदोल, धोंधी।
केंकरा, केंछुवा, जोंक मछरी अउ ढोंड़िया।।
अंधियारी रतिहा मां अड़बड़ निकलयं,
बड़ बिखहर बिच्छी, सांप-चरगोरिया।
कनखजूरा-पताड़ा, सतबूंदिया “ओ” गोेहेह,
मुंह लेड़ी, धूर, नांग, कंरायत कौड़ीया।।
भाजी टोरे बर खेत-खार “औ” बियारा जाये,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मंछरिया भाजी लायं ओली भर भर के।।
मछरी मारे ला जायं ढीमर-केंवट मन,
तरिया “औ” नदिया मां फांदा धर-धर के।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,
ढूंटी-मां भरत जायं साफ कर-कर के।।
CG Shayari |
धान-कोदी, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा
तिली, सन-वन बोए जाथे इही ॠतु-मां।
बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,
बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मां।।
हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा
गनेस-बिहार, सब आथें इही ॠतु मां।
गाय-गोरु मन धरसा-मां जाके हरियर,
हरियर चारा बने खायें इही ॠतु मां।।
Cg Author CG Shayari Rachnaye
कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,
कभू केउ दिन-ले-झड़ी-ह हरि जाथे जी।
सहे नहीं जाय, धुंका-पानी के बिकट मार,
जाड़ लगे, गोरसी के सुखा-ह-आथेजी।।
ये बेरा में भूंजे जना, बटुरा औ बांचे होरा,
बने बने चीज-बस खाये बर भाथें जी।
इन्दर धनुष के केतक के बखान करौ,
सतरङ्ग अकास के शोभा ला बढ़ाये जी
घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन
सनन-सनन चले पवन लहरिया।
छाये रथ अकास-मां, चारों खूंट धुंवा साही
बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।
चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी
बससे मूसर-धार पानी छर छरिया।
भर गें खाई-खोधरा, कुंवा डोली-डांगर “औ”
टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।
Koduram Ki Rachnaye
गीले होगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयां सुग्धर मखेलमलसाही,
जामिस हे बन, उल्होइस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बांट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झांके बपुरा-ह-कभू-कभू,
“रस-बरसइया आइस चउमास हर”।।
देखे के लाइक रथे जाके तो देखो चिटिक,
बारी-बखरी ला सोनकर को मरार के।
जरी, खोटनी, अमारी, चेंच, चउंलई भाजी,
बोये हवें डूंहडू ला सुग्धर सुधार के।।
मांदा मां बोये हे भांटा, रमकेरिया, मुरई,
चुटचुटिया, मिरची खातू-डार-डार के।
करेला, तरोई, खीरा, सेमी बरबटी अउ,
ढेंखरा गड़े हवंय कुम्हड़ा केनार के।।
ककरों चुहय छानी, भीतिया गिरे ककरो,
ककरो गिरे झोपड़ी कुरिया मकान हर,
सींड़ आय, भुइयां-भीतिया-मन ओद्य होयं,
छानी-ह टूटे ककरो टूटे दूकान हर।।
सरलग पानी आय-बीज सड़ जाय-अड,
तिपौ अघात तो भताय बोये धान हर,
बइहा पूरा हर बिनास करै खेती-पबारी,
जिये कोन किसिम-में बपुरा किसान हर?
घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,
जम्मो नार-बोंवार-ला छानी-मां, चढ़ाये जी।
धरमी-चोला-पीपर, बर, गलती “औ”,
आमा, अमली, लोम के बिखा लगायै जी।।
फुलवारी मन ला सदासोहागी झांई-झूई,
किंरगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मां सजायं जी।
नदिया “औ” नरवा मां पूरा जहं आइस के,
डोंगहार डोंगा-मां चधा के नहकायं जी।।
सहकारी खेती में ही सब के भलाई हवै,
अब हम सहकारिता – मां खेती करबो।
लांघन-भूखन नीरहन देन कंहूच-ला,
अन्न उपजाके बीता भर पेट भरबो।।
भजब अकन पेड़ – पउधा लगाबो हम,
पेड़-कटई के पाप करे बर उरबो।
देभा-ला बनाओ मिल-जुल के सुग्धर हम,
देश बर जीबो अउ देश बर मरबो।।
घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,
जम्मो नार-बोंवार-ला छानी-मां, चढ़ाये जी।
धरमी-चोला-पीपर, बर, गलती “औ”,
आमा, अमली, लोम के बिखा लगायै जी।।
फुलवारी मन ला सदासोहागी झांई-झूई,
किंरगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मां सजायं जी।
नदिया “औ” नरवा मां पूरा जहं आइस के,
डोंगहार डोंगा-मां चधा के नहकायं जी।।
बिछलाहा भुइयां के रेंगई-ला पूंछो झन,
कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गरिथें।
मउसम बहलिस, नवा-जुन्ना पानी पीके,
जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें।।
कोन्हों मांछी-मारथे, कोन्हों मन खेदारथें तो,
कोन्हों धुंकी धररा के नावे सुन डरथें।
कोन्हों-कोन्हों मन मनमेन मैं ये गुनथे के
“येसो के पानी – ह देखो काय-काय करथें”।।
लेखक – कोदूराम दलित
कोदूराम दलित का जन्म सन् 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था।
गांधीवादी कोदूराम प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे उनकी रचनायें करीब 800 (आठ सौ) है पर ज्यादातर अप्रकाशित हैं। कवि सम्मेलन में कोदूराम जी अपनी हास्य व्यंग्य रचनाएँ सुनाकर सबको बेहद हँसाते थे। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वाभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था। उनकी रचनायें –
1. सियानी गोठ 2. कनवा समधी 3. अलहन 4. दू मितान 5. हमर देस 6. कृष्ण जन्म 7. बाल निबंध 8. कथा कहानी 9. छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति।
इनकी छत्तीसगढ़ी कविताओं में रचनाओं में छत्तीसगढ़ का गांव का जीवन बड़ा सुन्दर झलकता है.
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